कोया पुनेम
🙏समस्त आदिवासी सगा जनों को सेवा जोहर,पुरुण जोहर, ;
आइये हम सब मिलकर कोया पुनेम का अर्थ समझते हैं ,
हमारे कोया वंशीय गोंड सगा समाज में कोया पुनेम से सम्बंधित जो कथासार मुह्जबानी प्रचलित है,उस आधार पर कोया पुनेम की संस्थापना कब और कौन से युग मे की गई है, इसका हम मोटे तौर पर अनुमान लगा सकते हैं, कोया पुनेम कथा सारों से इस पुनेम की संस्थापना पारी कुपार लिंगों ने संभु शेक युग मे की गयी थी ऐसे हमे जानकारी मिलती है, शंभू शेक का युग इस भारत देश मे आर्यों के आगमन के पुर्व का युग माना जाता है,अवश्य ही आज से करीबन 10-12 हजार वर्ष पुर्व काल में जब इस भू-भाग में हमारे पूर्वज "कोया मन्वाल "समाज के लोगों का राज्य था तब ही कोया पुनेम की संस्थापना की गई है, कोया मन्वाल गोण्डी शब्द का अर्थ गुफा एवं कंदरा निवासी होता है,
उसी तरफ कोयापुनेम का अर्थ कोयाधर्म होता है जिसे गोण्डी या गोन्गों धर्म भी कहा जाता है । पुनेम शब्द पुयनेम शब्द इन दो शब्द मेल से बना है "पुयम" यानी सत्य और नेम याने मार्ग (रास्ता) होता है, जिस पर से 'कोया मन्वाल पुनेम ' याने गुफा या कंदरा निवासियों का सदमार्ग ऐसी गोण्डी भाषा में शब्द प्रयोग किया गया है, माय रय्तार जन्गो, कली कंकाली के आश्रम के मंडूंद(तैतीस) कोट बच्चों को कोयली कचार गढ़ के कोया (गुफा) से मुक्त कर" कुपार लिंगों " जिन्हें आदिवासियो के देवता के नाम से जाना जाता है, उन्होँने उन बच्चों को मुक्त कर अपना शिष्य बनाया तथा सत धर्म की दीक्षा दी, लिंगों के उन कोया मन्वाल शिष्यों ने जिस पुनेम (सत् मार्ग का प्रचार प्रसार किया उन्ही के नाम पर "कोया पुनेम " कहा जाता है,
क्यूँ कि गोंड सगा समाज के लोग उन्ही की उपसना सगा मूठ देवताओं के रुप में करते हैं ।
प्राचीन काल में कुपार लिंगों कोया पुन्गार ( मानव पुत्र) हमारे समाज मे पैदा हुआ और कोया वंशीय गोंड सगा समाज का प्रेरणादायक और कोया पुनेम का संस्थापक बना,
उसका जीवन चरित्र तथा उसके द्वारा प्रस्थापित किये गये कोया पुनेम और सगा समाजिक तत्वज्ञान की जानकारी आज हमारे समाज् मे व्याप्त है,किन्तु किसी भी भाषा में आज तक इस विषय पर कोई ग्रंथ नही लिखा गया है,प्राचीन काल मे जब गोण्डी भाषा गोंडवाना की राज भाषा थी तब किसी के द्वारा लिखा गया भी हो तो भी आज उसका नाओ निसान नही है,उस अतिदीत महापुरुष की चरित्र कथा,उसके द्वारा प्रस्थापित किये गए कोया पुनेंंमी निति,सिद्धांत एवं सगा युक्त सामाजिक तत्वज्ञान की जानकारी आज भी हमारे समाज में प्रचलित है फिर भी उस ओर हमारे समाज के लोग असीम उदासीनता दर्शाते हैं,यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है,सगा सामाजिक तथा धार्मिक तत्वज्ञान इतनी उच्च कोटि के मूल्यों से परिपूर्ण है की हमारे इस कोया वंशीय मानव समाज पर आर्यों के आक्रमण से लेकर आज तक कितनी ही धर्मियों का आक्रमण हुआ,
राज सत्ता छीन लिया गया तथा समाजिक व्यवस्था तहस नहस हो गई ,फिर भी हमारे समाज मे धार्मिक विचार धाराओ पर कुछ भी प्रभाव नहीं हुआ,कल भी हमारे समाज फड़ापेन का उपासक था, आज भी है और भविष्य मे भी रहेगा ।।
हमारा समाज जय सेवा मन्त्र का परिपालनकर्ता था ,आज भी करता है और भविष्य में भी करता रहेगा।।
" जय सेवा"
इन सभी बातों को ध्यान देने पर हम गोंड समाज के लोगों का कुपार लिंगो के बारे मे स्वाभिमान जागृत होना स्वाभाविक बात है,क्यूँ कि वही हमारे समाज में पैदा हुआ था और वही सतधर्म का मार्ग बनाया,उसके द्वारा प्रस्थापित की गई सगा समाजिक व्यवस्था हमारी प्रगत सभ्यता की विशालकाय वृक्ष है, इसलिये उसका चरित्र एवं कोया पुनेम और सगा समाज दर्शन का अर्थ समझ लेने की जिज्ञासा हमारे मन मे पैदा होनी चाहिए ।।
कोया पुनेम का अन्तिम लक्ष्य सगा जन कल्याण करना है,उसके लिए उसने जय सेवा मन्त्र का मार्ग बताया है,जय सेवा याने सेवा का भाव जय जय कार करना अर्थात् एक दुसरे की सेवा करके सगा कल्याण साध्य करना,उसके लिए उसने त्रैगुण मार्ग बताया है जो हमारे बौद्धिक मानसिक और शारीरिक कर्म इन्द्रियों से सम्बंधित है,मनुष्य इस प्रकृति का ही अंग है प्रकृति की सेवा उसे हर वक़्त प्राप्त होती रहे इसलिये प्रकृती संतुलन बनाए रखना अनिवार्य होता है,कोया वंशीय गोंड सगा समाज़ में जो 750 कुल गोत्र हैं उन प्रत्येक गोत्र के लिए एक पशु पक्षी तथा वनस्पतियाँ कुल चिन्हों के रुप में निश्चित कर दी गई है,प्रत्येक कुल गोत्र धारक का कुल चिन्ह है,वह उनकी रक्षा करता है।।
______ जय सेवा _____
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