आदि पुनेमी मुठ्वा पहांदी पारी कुपार लिंगो

    प्रथम पंक्ति में चावल के मुठ पर संभु गौरा के प्रतिक को रखा जाता है ,क्योंकि उसके ही मार्गदर्शन में गोंडी सगा देवी की नियुक्ति रुपोलंग पाडी पहांदी कुपाड़ लिंगो ने की थी .

 दुसरे पंक्ति में चावल के पांच मुठ रख कर उन पर कुपाड़ लिंगो के द्वारा कोय्तुरों को सगा युक्त शाखाओं कप संरचित करने हेतु जिन पांच भूमिकाओं की नियुक्ति की गई थी उनको 1. नारायणसुर ( नारायण पेन ) 2. कोला सुर ( काला पेन ) 3. हिराजोती ( जाखा राज ) 4. मानको सुन्गाल ( माट्याल पेन ) 5. तुरपोराय ( तलवार शक्ति  पेन ) के रूप में विभाजित किया जाता है .

तीसरे पंक्ति में चावल के मुठ रखकर लिंगो चुडा को पहेले रखकर उसके बाद उसके परिवार के सगा पेन रखे जाते हैं इन्ही चुदुर पेन की संख्या से वह परिवार कितने देवों के सगा शाखा से सम्बंधित है , इसकी जानकारी होती है .

लिंगो का चुडा इस बात से प्रतिक है की उसने कोय्तुरों को एक गोंदोला में अनुबंधित करने का कार्य किया है ,इसलिए उसके नाम से एक चुडा स्थापित किया जाता है ,\.

उक्त सभी देवों में निर्मित एक विशेष विधि विधान में कुँवारी लोहे से की जाती है जिसे गोंड समुदाय ओतारी या वतकारी क्रिया कहते हैं ,सूरज नारायण पेन का प्रतिक मात्र शंख या शिंगी के रूप में होता है . 

इसके अतिरिक्त प्रत्येक कोय्तुरों धन बाई, धन ठाकुर ,गाथा पीठ , माई ( दाई ) शक्ति पीठ आदि स्थापित होती है .जिन्हें सुबह शाम भोजन करने से पहेले छिटकी ( विदुर कियाना गोंगो ) किया जाता है ,इस तरह गोंडी / कोयतुर सगा देवी की संरचना के कोयतुर सगा वेनो ( व्यक्ति ) की पहचान होती है .


                                                                पहांदी पारी कुपार लिंगो 

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