महावीर भीमाल पेन

                                                   महावीर भीमाल पेन के इतिहास


गोंडीयन कथा के अनुसार प्राचीन काल में भीमाल नामक एक ऐसा योग सिद्धि प्राप्त शूरवीर औए बलशाली महापुरुषका जन्म चैत्र पूर्णिमा के दिन हुआ था | वह मध्यप्रदेश के मैकल पर्वतीय मालाओं के तराई में स्थित बय्यर(बैहर) लांजी (बालाघाट) मध्यप्रदेश के निवासी भूरा भूमका और कोतमा दाई के पुत्र थे |

 साहित्यों से पता चलता है की , रावण(रावेन) काल से 700 वर्ष पहले  मध्यप्रदेश के मोहभट्टा नाम के राज्य में गोंड समूह के राजा सयमाल मंडावी का राज्य था,

राजा सयमाल मंडावी के रानी का नाम झामय्या था | उन्हें भूरा भगत नाम का पुत्र था , ये पुत्र बड़ा ही साहसी था और अकेले ही जंगल में जाकर खूंखार जानवरों का सिकार करना उनका सौक था |

एक दिन भूरा भगत और बैहर के जंगल में सिकार करने गए जिसे आज हम कान्हा किसली के नाम से जानते हैं ,उसी दिन उसी राज्य के राजा ढोला उइका अपनी पुत्री कोतमा के साथ उसी जंगल में आये थे ,किन्तु संजोग से भूरा भगत कोतमा प्यास बुझाने हेतु पानी की खोज में एक तालाब किनारे मिले, एक दुसरे को देखकर दोनों मुग्ध हुए और बाद में इधर उधर की बाते करने लगे संजोग से कोतमा के पिता ढोला उइका वहां पहुंचे और उन्होंने भूरा भगत को देखा भूरा की सुन्दरता देख कर ढोला  के मन में अपनी शादी की कल्पना जागी उन्होंने अपनी लड़की के पास भूरा से शादी की बात रखी और विवाह की बाते हुई ,फिर कुछ दिनों बाद शादी हुई और शादी होने के कुछ साल बाद कोतमा गर्भात (गर्भ ) पेट में बच्चा  पल रहा था |एक दिन सास झमया को बोली मुझे जंगल में जाके कुछ खाने का मन हो रहा है ,उसी दिन यानी चैत्र पूर्णिमा  के दिन कोतमा के पेट से एक बच्चे ने जन्म लिया उसका नाम भीमा रखा गया ,भूरा भगत और कोतमा को पुत्र होने की खुशी पुरे राज्य में मनाई गई |

भीमा को पांचवे साल ही ज्ञान के स्कुल में यानि गोटुल में डाला गया ,गोटुल के अध्यक्ष याने मुर्सेनाल उस वक़्त माहारु उइका था , वे भीमा के गुरु बनें |भीमाके बाद भूरा भगत और कोतमा के कुल 11 पुत्र-पुत्रीयां हुई जिसमें भीमा के 6 भाई 5 बहनें थी |

7 भाइयों के नाम 

1) भीमा 

2) जाट्बा

3) केशबा

4) हिरबा

5) भाजी 

6) मुकोशा

7) बाना 

5 बहनों के नाम 

1) पण्डरी

2) पुन्गुर 

3) मुन्गुर

4) कुशारे 

5) खेरो 

भीमा की सभी  शिक्षा गोंडी परंपरा के महान संस्थान गोटुल में 18 वर्ष की आयु में ही पूरी हुई ,जहाँ से कोई भी आदमी  सर्व गुण संपन्न होकर ही बाहर निकलता है |

विशेष बात यह थी की उन्हें पहले से ही कुदरती शक्तियां प्राप्त थीं | धनुर्विद्य ,योग ,जतरी ,तन्दारी ,इत्यादि विद्याओं में कम समय में ही बहोत बड़ी निपुणता हासिल की |

बीमाल पेन ने हर गाँव गाँव जाकर कसरत रोंन अर्थात गोटुल रूपी व्यायाम शालाएं स्थापित क्र उसमे कोयावंशी गणजीवों को बड़गा बिलाम्ब ,मल्ल,मुष्टि ,कुस्ती ,आदि हुनर सिखाने का कार्य किया |

इस बिच राजा भूरा भगत के बहेनोई ,बेन्दुला गण के राजा सेवता उइकाल को भी  दो जुड़वाँ पुत्रियाँ थीं 

1) बमलाई 

2) समलाई (तिलकाई) 

यह दोनों बहनें भी सुन्दर होने के साथ साथ अनेक विद्याओं में भी निपुण थी.

उधर भीमा की भी शिक्षा पूरी हो चुकी थी .

कम उम्र में सभी विद्याओं के निपुण होने के कारण भीमा को मुठवा  मतलब राजनेगी दर्जा प्राप्त हुआ |इसलिए इन्हें चौथा धर्म गुरु का दर्जा भी दिया गया था |

इधर राजा सेवता और रानी मानको को अपनी दोनों जुड़वा कन्याओं के  मड़मिंग ( शादी ) की चिंता सताने लगी थी और उधर राजा भूरा और रानी कोतमा को भी भीमा का शादी का इन्तजार था , दोनों तरफ मड़मिंग ( शादी ) की बात चल रही थी | दोनों जुड़वा बहनें बमलाई और समलाई भीमा से शादी करने के लिए उत्साहित थीं ,क्योंकि दोनों को ही भीमा पसंद आ गया था ,भीमा से भी शादी के बारे में पूछा गया लेकिन भीमा समाज सेवा के लिए शादी के प्रस्ताव को नकार दिया |

बहुत समझाने पर भीमा ने अपनी शर्त के साथ शादी के लिए हाँ कर दी -

शर्त यह था - 1 दिन ,1 माह ,1 साल में मुर्गा बाग़ देने से पहले दोनों बहनें में से अगर कोई मुझे खोज लेता है तो उससे भीमा मड़मिंग ( शादी ) करेगा , नहीं तो आप भी कुंवारें और भीमा भी कुवारा |

दोनों बहने इस शर्त के लिए तैयार हो गई |

सभी को सोता देख भीमा अपने सर्वोच्छ प्रकृति शक्ति फड़ापेन के पेंनठाने ,डोंगरगढ  जायेंगे ,वो दोनों बहने वहां पहुचे तो पता चला की भीमा वहां का दर्शन लेकर गुरु महारु भुमका के गोटुल गए ,बाद में अपने माता -पिता की सुर्वेय सेवा करके ,समाज सेवा में लग गए उधर शर्त के मुताबिक दोनों बहनें बमलाई और सतलाई भीमा के पीछे करते हुए आ रही थीं |उन्हें पता था की भीमा सबसे पहेले उनके सर्वोच्छ प्रकृति शक्ति फड़ापेन के पेंनठाने ,डोंगरगढ  जायेंगे|

वो दोनों बहनें वहां पहुचें तो उन्हें पता चला की भीमा वहां से मुठवा के दर्शन लेकर आगे निकल चुके हैं ,इस बीच बमलाई डोंगरगढ  में थक चुकी थी ,तो वह वहीँ रुक गई ,आज उसी बमलाई उइकाल के पेंनठाना डोंगरगढ़ में मौजूद है और उन्हें बमलेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है ,

 समलाई (तिलकाई)  डोंगरगढ़ में नहीं रुकी ,वह भीमा की खोज में आज के कोराडी तक आई तो वहाँ मुर्गे ने बाग़ दे दी थी ,

इसलिए शर्त के मुताबिक समलाई कोराडी में ही रुक गई ,आज भी कोराडी में तिल्काई दाई  का पेंनठाना मौजूद है जिसे आज लक्ष्मी के नाम से जाना जाता है |

इस तरह भीमापेन का शादी न करके समाज सेवा करने का उदेश्य सफल हुआ ,फिर उन्होंने और उनके 5 बहनें और 7 भाई ने भी समाज सेवा में अपने आप को इतना समर्पित क्र दिए की हर जगह में खोजने पर उनकी जड़ और महत्त्व मिलता है ,

भीमाल पेन से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी :-

↪   भीमाल पेन को महावीर भी कहा जाता है क्योकि वो व्यायाम शाला के जन्मदाता भी हैं .

↪  भीमाल पेन शादी सुदा नहीं थे , इसलिए उन्हें कुवारा भीमाल पेन भी कहा जाता है |

↪ भीमाल पेन की सबसे छोटी बहन खैरो दाई {शीतला माता } को आयुर्वेद (वैध माता ) भी कहा जाता है |

↪  भीमाल पेन के पेंनठाना  पेंच नदी के किनारे सुयाल मेटटा में है ( छिंदवाडा जिला  ) 

↪ भीमाल पेन अपने योग शक्ति के बल से मुश्लाधर बारिश भी करवाते है ,इस लिए आज भी आदिवासी लोग उनकी याद करते हैं ,इसलिय उन्हें पानी का देवता भी कहा जाता है |

↪ भीमाल पेन का जन्म चैत्र पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका जन्मोत्सव प्रत्येक वर्ष चैत्र मॉस पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है |














 

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